☆☆☆ धैर्य धरह मित्र ☆☆☆ गाछक झोंझ स' निकसल सुरूजक एकटा किरिण धरि हुलकी मारतह तोरो हृदयमे अवश्य कने धैर्य धरह धैर्य धरह मित्र ढाकी भरि खखरी सऽ झड़बे करतैक बाकुट भरि धान आ छिरिया जेतह लावा ठोर पर हम देखि रहल छी नील स' नीपल तोहर आँखिक अकासमे उगबाक ब्योंत क' रहल छह एकटा भरोसक चान मारिते हरखक तरेगण लेने नै नै अगुताह नै धैर्य धरह धैर्य धरह मित्र आइ ने काल्हि ढहबे करतह तोरा भीतर अक्खज सन गड़िया क' बैसल अन्हारक पहाड़ आ फरीछ होइतहिं तोरो तिरपेच्छन करबे करतह ई पृथ्वी सफलताक पिहानी कहैत बस्स मेहनति केर कोदारि स' तमैत चलह कर्तव्यक परती अबेर-सबेर तोरो आगू नतमस्तक हेतह एकहक टा धानक शीश ■✍ अक्षय आनन्द सन्नी
विस्मृत शब्दक मादे विमर्श : प्रयोग आ प्रासंगिकता ______________________________________ लेखक -: विकाश वत्सनाभ जी वस्तुतः ओ विस्मृत शब्द सभ जड़ि थिक। जड़ि दिस देखबाक प्रवृत्ति अपन अस्मिता केँ अखण्ड रखबाक पहिलुक ओरिआओन होइत अछि । एहन शब्द सभ मैथिलीक अपन बासनक रान्हल मधुरगर पाक अछि जकर प्रकृति आ उत्पत्ति मिथिला-मैथिली संस्कार आ संस्कृति से भेल अछि। एहि मे आत्मीयता आ भाषाक सुवास छैक। वस्तु, स्थान आ परिवेश केँ ओकर नैसर्गिक रूप मे आत्मसात करएबाक सहजता छैक। ओ शब्द सभ पुरान घरक सूचक सँ बेसी नव घर मे ओहि स्मृति केँ जोगा कए रखबाक एकटा उद्योग छैक जतय ओ आब अनभुआर सन 'फील' करैत अछि। प्रत्येक भाषाक शब्दक अपन एकटा विशिष्ट संस्कृति होइत छैक। एहि संस्कृति मे समयानुकूल परिवर्तन सेहो होइत छैक। आन भाषा सँ पैंच-उधार चलैत रहैत छैक। भाषा केँ जिबैत रहबाक लेल ओकरा अपन बाउंड्री मे किछु स्पेस तँ अवस्से दोसर भाषा केँ देबाक चाही जाहि सँ ओ समीचीन आ प्रासंगिक बनल रहए। अनेक तरहक वैश्विक परिवर्तन केँ आत्मसात कए सकए। मुदा एहि अधिकारक विस्तार एतेक नहि विस्तृत हुए जे आगंतुक चासे हरैप लैथ। अल्ट्रामोडर्न ह